"Brahmachari Girish Ji Honoured at Dharma Sanskriti Mahakumbha 2016"
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महर्षि उपदेषामृत प्रवाह -भावातीत ध्यान शैली


महर्षि उपदेषामृत प्रवाह -भावातीत ध्यान शैली
श्रीमदभगवतगीता में भगवान् ने अपनी विभूतियों तथा स्वरूप का वर्णन करते हुए स्पष्ट कहा है कि प्राणियों की चेतना मेरा ही स्वरूप है । उस चेतना से विहीन प्राणी निर्जीव हो जाता है, और पंचतत्व को प्राप्त होता है । फिर भगवान् ने चेतना की विभिन्न श्रेणियों का वर्णन करते हुए यह भी कहा है कि इन्द्रियों की चेतना से मन की चेतना करोड़ों गुनी अधिक है और जो प्राणियों की "अन्तर्निहित" शुद्ध चेतना है, जो जीवन स्वरूप है, जो सर्वशत्तिफ़ सौन्दर्य सम्पन्न है, जो सर्व आनन्द-स्वरूप है वही इस मन की चेतना का प्रबृद्ध अथवा विकसित स्वरूप है ।
चेतना की उच्च अवस्था की प्राप्ति अथवा चेतना के विकास का क्या अर्थ है ? इसका अर्थ है-'विशुद्धि चेतना'-अर्थात् वह विशुद्ध चेतना जो स्वयंमेव आन्तरिक सनातन शाश्वत सत्यता है ।
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