वैदिक बाड्मय के चालीस क्षेत्रो को परमपूज्य ब्रह्मलीन महर्षि महेश योगी जी ने दीर्घ अंतराल के पश्चात एक बार पुनः गठित और मूल स्वरूप में स्थापित किया |
सम्पूर्ण वैदिक वाड्मय के इस व्यवस्था क्रम में चारो वेद, छः वेदांग, छः उपांग, नौ संहिताओं सहित उपवेद, आयुर्वेद, गान्धर्ववेद, स्थापत्यवेद, और धनुर्वेद, ब्राह्मण ग्रंथो के समूह में इतिहास, पुराण, स्मृति, उपनिषद, आरण्यक, ब्राह्मण और प्रतिशाख्यों में छः प्रातिशाख्य हैं |
''आदिरन्तनसहेता'' सिध्दान्त के अनुसरण में वेद विज्ञान के सभी चालीस क्षेत्रो की उपलब्ध संहिताओं एवं ग्रंथो के प्रथम और अंतिम ऋचा, मंत्र, श्लोक अथवा सूत्र का संग्रह इस किताब में किया गया हैं |
इस किताब के माध्यम से श्रोताओं को महर्षि वेद विज्ञान के चालीस क्षेत्रो के नाम, उनके विभिन्न ग्रांटों के नाम और प्रत्येक ग्रन्थ के प्रथम व अंतिम ऋचा, मंत्र, श्लोक या सूत्र को पड़ने का दुर्लभ अवसर प्राप्त होगा | अलग-अलग ग्रंथो में भाषा का अलग-अलग प्रवाह, विभिन्न छन्दों का प्रयोग, स्वरों का प्रयोग, उच्चारण विधि आदि भिन्नताये पाई जाती हैं |