गुरु सम्पूर्ण ज्ञान के स्त्रोत और आन्नद तथा करुणा के अन्नत सागर है | गुरु यह सुनिश्चित करते है कि सभी व्यक्ति ज्ञान और माया के प्रभाव से मुक्त रहे और स्वधर्म पालन करते हुए जीवन के मूल उद्देश्य-मोक्ष के राजपथ पर अग्रसर हों |
गुरु की उपस्थिति, उनका भगवत स्वरूप दर्शन आन्नद दायक, प्रेरणा दायक, आत्म प्रकाशक, जीवन ज्योति प्रदीपक, अखण्ड शांति प्रदायक और विकासवान है | गुरु अभिभावक कि भूमिका भी निभाते है और देवताओ की अपने भक्तो के प्रति वरदायी प्रकृति की भाँति गुरु भी प्रत्येक मनुष्य को समस्त संभावित उत्कर्षो से परिपूर्ण कराना चाहते है और उनकी चेतना को ब्राहीय चेतना के स्तर पर प्रतिष्ठापित करना चाहते हैं |
किसी भी भाषा की शब्दावली गुरु महिमा की गाथा के लिए पर्याप्त नहीं हैं | अतः हम केवल आत्माभिव्यक्ति से ही श्री गुरु के चरणो में कोटिशः प्रणाम करते हैं और उनके भगवद स्वरूप की आराधना करते हैं | न गुरोरधिकम न गुरोरधिकम न गुरोरधिकम न गुरोरधिकम गुरु गीता गुरु महिमा की अनन्त गाथा हैं | जयगुरुदेव
श्री गुरु गीता -------- ५५ :३२
गायक : अथर्व वेद विद्वान पंडित रमेश वर्धन और कृष्णा यजुर्वेद विद्वान पंडित रामकृष्ण भट्ट
Gurur-Brahma Gurur-Vishnuh Gurur-Devomaheshwarah Guruh Saakshat Param Brahma tasmai Shri Gurave namah
The Guru is Brahma, the Guru is Vishnu and the Guru is Maheshwara-Shiva. Veneration to the Guru, who is Parabrahma-manifest Totality.
The Guru is the fountainhead of pure knowledge and the infinite ocean of bliss and compassion. He lovingly guides his disciples on the path of righteousness, freeing them from the overshadowing influence of ignorance and illusion, and leading them to the ultimate goal of human life-Enlightenment.
His very presence-divine Darshan-is enjoyable, inspiring, elevating, self-illuminating, radiating the light of life and the deep experience of perpetual peace. The Guru has a parental role, naturally wishing to bestow every fortunate thing on his disciples-all that any Devata could ever bestow upon his devotee. He desires that his disciples rise to Unity Consciousness-the supreme level of life, which is the pure Unified Field of all possibilities.
There are no words in any language adequate to express the glory of the Guru. Thereby we can only express our gratitude, pay homage and bow down to his lotus feet, and revere him as Divinity. There cannot be anything in life greater than the Guru: Na Guroradhikam, na Guroradhikam, na Guroradhikam. The Guru Geeta sings the glory of Shri Guru.
All Glory to Shri Guru Dev. Jai Guru Dev
Shri Guru Geeta -------- 55:32
Recitation by: Atharv Ved Vidwan Pt. Ramesh Vardhan and Krishna Yajurved Vidwan Pt. Ramkrishna Bhatt