हम सभी जानते हैं कि किसी भी समाज एवं राष्ट्र के समस्त अच्छे नागरिकों का स्वप्न अपने समाज एवं राष्ट्र को आदर्श बनाना है । जब हम राजमार्गों से गुजरते हैं, तो हम 'आदर्श ग्राम' का संकेत देखते हैं । ग्राम वास्तव में आदर्श है अथवा नहीं यह भिन्न प्रश्न है किन्तु इतना तो है कि एक अच्छा विचार एवं संकल्प तो है। हमने कभी भी 'आदर्श शहर' का संकेत नहीं देखा है। क्यों? इस बात पर विचार करना अतिरेक है कि क्या एक शहर आदर्श बन सकता है । क्या हमने कभी इस बात पर विचार किया कि हमें हमारे समाज, नगर, प्रांत, राष्ट्र एवं राष्ट्र मण्डल को आदर्श बनाने के लिए क्या करने की आवश्यकता है? शायद नहीं । प्रत्येक व्यक्ति उसके अपने कार्यों में व्यस्त है। उसके पास स्वयं के विषय में विचार करने का भी पर्याप्त समय नहीं है, अन्य के विषय में अथवा समाज के विषय में क्या विचार करेगा । विभिन्न धर्मों, विभिन्न संस्कृतियों के महान संतों, ऋषियों, महर्षियों ने विभिन्न समयों में इस विषय पर विचार किया है, वे इस विचार को प्रसारित करते रहे हैं एवं इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए सैद्धांतिक ज्ञान एवं व्यावहारिक कार्यक्रम प्रदान करते रहे हैं किन्तु किसी कारणवश यह पर्याप्त मात्रा में नागरिकों तक उस समय में मुखरित नहीं हो पाये । परम पूज्य महर्षि महेश योगी जी ने प्रत्येक समाज में आदर्श व्यक्ति, आदर्श नागरिक के निर्माण के लिए व्यावहारिक कार्यक्रम दिया है ।